Toxic Mercury Released Due to Melting Permafrost in the Arctic: Environmental and Health Risks; आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से निकल रहा है जहरीला पारा: पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर खतरा

हाल ही में किए गए एक अध्ययन ने आर्कटिक क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से उत्पन्न हो रहे एक नए खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया है। इस अध्ययन के अनुसार, पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बड़ी मात्रा में जहरीला पारा वातावरण में निकल रहा है। यह स्थिति न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि आर्कटिक क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। पारा, जो एक विषैली धातु है, तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र और प्रतिरक्षा प्रणाली को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

अध्ययन के निष्कर्ष:

शोधकर्ताओं ने युकोन नदी के पास पर्माफ्रॉस्ट के ऊपरी तीन मीटर से लिए गए नमूनों का विश्लेषण किया और सैटेलाइट डेटा से इन नमूनों की तुलना की। इस विश्लेषण से पता चला कि नदी के किनारों के कटाव के कारण “काफी अधिक” मात्रा में पारा वातावरण में निकल रहा है। यह खोज इस बात का संकेत है कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पर्यावरण में पारे का स्तर तेजी से बढ़ सकता है, जो पहले से ही एक चिंताजनक स्थिति है।

पर्माफ्रॉस्ट के बारे में जानकारी:

पर्माफ्रॉस्ट वह भू-भाग है जो कम-से-कम दो वर्षों तक जमा (0 डिग्री सेल्सियस) या उससे अधिक ठंडा बना रहता है। यह मृदा, चट्टान के टुकड़ों और रेत से मिलकर बनता है, जो बर्फ के जरिये एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। पर्माफ्रॉस्ट भूमि पृथ्वी के उच्च अक्षांशों जैसे आर्कटिक और अंटार्कटिका और ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है। हालांकि जमीन के जमे होने के बावजूद, पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र हमेशा बर्फ से ढके नहीं रहते हैं।

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के प्रभाव:

पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिसका प्रभाव केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के लिए भी कई प्रकार के खतरे उत्पन्न कर सकता है। आइए, इसके कुछ प्रमुख प्रभावों पर नजर डालते हैं:

  1. ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से मृदा में संग्रहित ऑर्गेनिक कार्बन का अपघटन होता है, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में उत्सर्जित होती हैं। ये गैसें ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या और गंभीर हो सकती है।
  2. प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस का मुक्त होना: पर्माफ्रॉस्ट में हजारों वर्षों से दबे प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस भी पिघलने के साथ मुक्त हो सकते हैं। ये रोगजनक मनुष्यों और पशुओं के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरे पैदा कर सकते हैं, क्योंकि इनमें से कई रोगजनक आज की दवाओं के लिए प्रतिरोधक हो सकते हैं।
  3. समुद्र जलस्तर में वृद्धि: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ सकता है, जो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और भू-क्षरण का खतरा बढ़ा सकता है। यह स्थिति वहां रहने वाले लोगों के लिए गंभीर समस्या खड़ी कर सकती है।
  4. पारे का उत्सर्जन: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पारा वातावरण में निकलता है, जो आर्कटिक क्षेत्र में रहने वाले 5 मिलियन से अधिक लोगों के लिए सीधा खतरा उत्पन्न कर सकता है। पारा एक अत्यधिक विषैली धातु है, जो न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से लेकर प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी तक कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।

पारे के बारे में जानकारी:

पारा एक प्राकृतिक धातु है, जो हवा, पानी और मिट्टी में पाई जाती है। यह एकमात्र धातु है जो कमरे के तापमान पर तरल अवस्था में रहती है। हालांकि पारा प्राकृतिक रूप से पाया जाता है, लेकिन इसके संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

  • प्राकृतिक स्रोत: ज्वालामुखी, भू-तापीय झरने, भूगर्भिक जमाव, महासागर आदि।
  • मानव-जनित स्रोत: कोयले या खतरनाक अपशिष्ट का दहन, सोने का खनन, औद्योगिक उपयोग आदि।

पारा तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र और प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है, जिससे मीनामाता रोग जैसी तंत्रिका संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। यह रोग पारे की विषाक्तता के कारण होता है और यह बहुत ही गंभीर स्थिति है।

निष्कर्ष:

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से आर्कटिक में जहरीले पारे का निकलना एक गंभीर समस्या है, जो न केवल पर्यावरण को, बल्कि वहां के लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है। इसके कारण ग्लोबल वार्मिंग, समुद्र स्तर में वृद्धि, और प्राचीन रोगजनकों के पुनरुत्थान जैसी समस्याएं और भी बढ़ सकती हैं।

इस समस्या का समाधान खोजने के लिए वैश्विक स्तर पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के खतरों को कम किया जा सके और आर्कटिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए जरूरी है कि सरकारें और अंतर्राष्ट्रीय संगठन मिलकर काम करें और ऐसे उपाय करें, जो इस चुनौती से निपटने में कारगर साबित हो सकें। साथ ही, इस विषय पर लोगों को जागरूक करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि वे इस समस्या के गंभीरता को समझ सकें और इसके समाधान में योगदान दे सकें।

FAQs:

पर्माफ्रॉस्ट क्या है और यह कहां पाया जाता है?

पर्माफ्रॉस्ट वह भू-भाग है जो कम-से-कम दो वर्षों तक जमा (0 डिग्री सेल्सियस) या उससे अधिक ठंडा बना रहता है। यह मृदा, चट्टान के टुकड़ों और रेत से मिलकर बनता है, और आमतौर पर आर्कटिक, अंटार्कटिका और ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है।

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से क्या खतरे हैं?

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस का मुक्त होना, समुद्र जलस्तर में वृद्धि, भू-क्षरण, भूस्खलन, और जहरीले पारे का उत्सर्जन जैसे गंभीर खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।

पारा क्या है और यह क्यों खतरनाक है?

पारा एक प्राकृतिक धातु है जो हवा, पानी और मिट्टी में पाई जाती है। यह एकमात्र धातु है जो कमरे के तापमान पर तरल अवस्था में रहती है। पारे के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र, और प्रतिरक्षा प्रणाली पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और यह मीनामाता रोग जैसी तंत्रिका संबंधी बीमारियों का कारण बन सकता है।

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पारा क्यों निकल रहा है?

पर्माफ्रॉस्ट में संग्रहित पारा उसके पिघलने पर वातावरण में निकलता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से युकोन नदी के किनारों से काफी मात्रा में पारा निकल रहा है, जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।

आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट पिघलने का मानव जीवन पर क्या प्रभाव हो सकता है?

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पारे का उत्सर्जन हो सकता है, जो आर्कटिक क्षेत्र में रहने वाले 5 मिलियन से अधिक लोगों के लिए सीधा खतरा उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा, समुद्र जलस्तर में वृद्धि और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।

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