Venezuela: First Country to Lose All Glaciers? वेनेजुएला: सभी ग्लेशियर खोने वाला पहला देश?

वेनेजुएला, दक्षिण अमेरिका का एक सुन्दर और प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर देश, वर्तमान में एक गंभीर जलवायु संकट का सामना कर रहा है। इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव (ICCI) के अनुसार, वेनेजुएला का हम्बोल्ट (या ला कोरोना) नामक आखिरी ग्लेशियर अब अपने अस्तित्व की अंतिम सीमा पर है। यह ग्लेशियर एंडीज पर्वतमाला में स्थित है और इसका आकार इतना सिकुड़ गया है कि अब यह ग्लेशियर कहलाने के मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है। क्या यह संकेत है कि वेनेजुएला आधुनिक इतिहास में पहला ग्लेशियर-मुक्त देश बनने जा रहा है?

ICCI और क्रायोस्फीयर का महत्व:

ICCI, पृथ्वी के क्रायोस्फीयर (हिममंडल) के संरक्षण हेतु कार्य करने वाला विशेषज्ञों एवं शोधकर्ताओं का एक नेटवर्क है। यह नेटवर्क विभिन्न देशों एवं संगठनों के सहयोग से कार्य करता है। क्रायोस्फीयर में हिम और स्थलीय हिमावरण, आइस-कैप्स, ग्लेशियर, पर्माफ्रॉस्ट और समुद्री हिमावरण वाले क्षेत्र शामिल होते हैं। ग्लेशियर वस्तुतः हिम और बर्फ के विशाल भंडार होते हैं, जो स्थलीय भाग पर ढलान की दिशा में मंद गति से आगे बढ़ते रहते हैं।

ग्लेशियरों के सिकुड़ने के कारण:

मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग, समुद्री जल के गर्म होने और जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यह समस्या केवल वेनेजुएला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे विश्व में इसके नकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहे हैं। इससे अल्पाइन (जैसे- हिंदू कुश हिमालय) और आइस शीट्स (जैसे- अंटार्कटिका) दोनों प्रभावित हो रहे हैं।

ग्लेशियर पिघलने के प्रभाव:

1. समुद्र जल स्तर में वृद्धि

नासा के अनुसार, यदि सभी ग्लेशियर और आइस शीट्स पिघल जाते हैं, तो वैश्विक समुद्र जल स्तर 60 मीटर से भी अधिक बढ़ जाएगा। इससे तटीय क्षेत्रों में अपरदन बढ़ेगा और तूफान एवं चक्रवातों से अधिक नुकसान भी होगा। समुद्र जल स्तर में वृद्धि के कारण तटीय शहरों और गांवों में बाढ़ की संभावना भी बढ़ जाएगी, जिससे लाखों लोग विस्थापित हो सकते हैं।

2. जैव विविधता की हानि

ग्लेशियरों के पिघलने से जैव विविधता पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। वालरस के पर्यावास नष्ट हो रहे हैं और ध्रुवीय भालू हिमावरण रहित भूमि पर अधिक समय बिताने को विवश हैं। इससे मानव और ध्रुवीय भालुओं के बीच टकराव की दर बढ़ रही है। अन्य वन्यजीव भी अपने प्राकृतिक आवास खो रहे हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।

3. आपदा

हिमालय जैसे क्षेत्रों में हिमनदीय झील के तटबंध टूटने से आने वाली बाढ़ (GLOFs) की घटनाएं बढ़ जाएंगी। इससे स्थानीय जनसंख्या और बुनियादी ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, हिमस्खलन और भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ सकती हैं, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होगा।

4. अन्य

गंगा जैसी प्रमुख नदियों में जल की उपलब्धता में कमी आएगी। इससे मत्स्यन और पोत-परिवहन जैसी आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। कृषि और पीने के पानी की कमी भी एक गंभीर समस्या बन सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा और जनस्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए किए गए उपाय:

वैश्विक स्तर पर किए गए उपाय:

1. इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD)

ICIMOD ने हिंदू कुश हिमालयन मॉनिटरिंग एंड असेसमेंट प्रोग्राम (HIMAP) शुरू किया है। इस प्रोग्राम का उद्देश्य हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन और निगरानी करना है।

2. यूनेस्को

यूनेस्को ने वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विसेज शुरू की है, जो ग्लेशियरों की स्थिति और उनके परिवर्तनों की निगरानी करती है। इसके तहत ग्लेशियरों के डेटा को एकत्रित और विश्लेषित किया जाता है, जिससे उनके संरक्षण के लिए रणनीतियाँ बनाई जा सकें।

3. संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 को अंतर्राष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष (International Year of Glacier Preservation) घोषित किया है। इसका उद्देश्य ग्लेशियर संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उनके संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयासों को बढ़ावा देना है।

भारत में किए गए उपाय:

1. राष्ट्रीय मिशन

भारत में हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मिशन शुरू किया गया है। यह मिशन 2008 में शुरू की गई जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change: NAPCC) का हिस्सा है। इस मिशन के तहत हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के उपायों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

2. अनुसंधान केंद्र

2016 में हिमाचल प्रदेश के चंद्रा बेसिन में ‘हिमांश’ नामक एक अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई थी। इस केंद्र का उद्देश्य हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों के अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ावा देना है। यहाँ वैज्ञानिक और शोधकर्ता ग्लेशियरों के पिघलने की गति, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और संरक्षण के उपायों पर काम कर रहे हैं।

निष्कर्ष:

वेनेजुएला का हम्बोल्ट ग्लेशियर का लगभग समाप्त हो जाना एक गंभीर चेतावनी है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे पर्यावरण पर कितना बुरा असर पड़ रहा है। यदि समय रहते इसके खिलाफ कदम नहीं उठाए गए, तो न केवल वेनेजुएला बल्कि पूरी दुनिया को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

ग्लेशियरों का संरक्षण न केवल हमारे पर्यावरण के लिए, बल्कि हमारी जैव विविधता, जल संसाधनों और आर्थिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह आवश्यक है कि हम सभी मिलकर इस संकट से निपटने के लिए कार्य करें और हमारे ग्लेशियरों को संरक्षित रखने के उपाय करें।

इस दिशा में जागरूकता बढ़ाना, अनुसंधान को प्रोत्साहित करना और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना महत्वपूर्ण है। केवल तभी हम ग्लेशियरों के संरक्षण और स्थायी भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. वेनेजुएला में हम्बोल्ट ग्लेशियर क्यों सिकुड़ रहा है?
    • मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। समुद्री जल का गर्म होना भी इस प्रक्रिया में योगदान देता है।
  2. ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र जल स्तर में कितना वृद्धि हो सकता है?
    • नासा के अनुसार, यदि सभी ग्लेशियर और आइस शीट्स पिघल जाते हैं, तो वैश्विक समुद्र जल स्तर 60 मीटर से भी अधिक बढ़ सकता है।
  3. ग्लेशियरों के पिघलने से जैव विविधता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
    • ग्लेशियरों के पिघलने से वालरस और ध्रुवीय भालुओं जैसे जीवों के पर्यावास नष्ट हो रहे हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
  4. हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने से क्या आपदाएं आ सकती हैं?
    • हिमालयी क्षेत्र में हिमनदीय झील के तटबंध टूटने से बाढ़ (GLOFs) की घटनाएं बढ़ सकती हैं, जिससे स्थानीय जनसंख्या और बुनियादी ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
  5. ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए कौन-कौन से वैश्विक प्रयास किए जा रहे हैं?
    • ICCIMOD, यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम और पहलें चलाई जा रही हैं, जैसे HIMAP और वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विसेज।
  6. भारत में ग्लेशियर संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
    • भारत ने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मिशन शुरू किया है और हिमाचल प्रदेश में ‘हिमांश’ अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है।
  7. ग्लेशियर संरक्षण के लिए आम जनता क्या कर सकती है?
    • आम जनता जागरूकता बढ़ा सकती है, ऊर्जा की खपत को कम कर सकती है, हरित ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दे सकती है, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में शिक्षित कर सकती है।
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