Venus Orbiter Mission: India’s First Step on Venus; वीनस ऑर्बिटर मिशन: भारत का शुक्र ग्रह पर पहला कदम

भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर स्थापित करने की तैयारी कर ली है। हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM) के विकास को मंजूरी दी है, जिसका उद्देश्य शुक्र ग्रह की कक्षा में एक अंतरिक्ष यान भेजना है। इस मिशन का प्राथमिक लक्ष्य शुक्र ग्रह की सतह, उपसतह और वायुमंडल के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना और इस ग्रह पर हो रहे भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन करना है।

शुक्र ग्रह को पृथ्वी का जुड़वां ग्रह कहा जाता है, क्योंकि इसका आकार और संरचना पृथ्वी से मिलती-जुलती है। हालाँकि, इसके घने और विषाक्त वायुमंडल के कारण यह सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह है। इस मिशन से वैज्ञानिकों को शुक्र ग्रह और पृथ्वी के विकास क्रम को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।

वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM):

वीनस ऑर्बिटर मिशन को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) मार्च 2028 में लॉन्च करने की योजना बना रहा है। इस मिशन का बजट 1,236 करोड़ रुपये है, जिसमें से 824 करोड़ रुपये अंतरिक्ष यान के विकास पर खर्च किए जाएंगे। यह मिशन न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमता को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की अंतरिक्ष शक्ति का एक नया परिचय भी देगा। इस मिशन के माध्यम से भारत उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल होगा, जिन्होंने शुक्र ग्रह का अध्ययन करने के लिए अपने अंतरिक्ष यान भेजे हैं।

मिशन के प्रमुख उद्देश्य:

  1. शुक्र ग्रह के वायुमंडलीय संरचना का अध्ययन
    शुक्र ग्रह का वातावरण बेहद सघन है, जो ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ावा देता है और इसे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह बनाता है। वीनस ऑर्बिटर मिशन शुक्र के वायुमंडल में हो रहे बदलावों, जैसे कि सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों और वहाँ के ग्रीनहाउस प्रभाव का गहन अध्ययन करेगा।
  2. शुक्र की सतह और उपसतह का अध्ययन
    शुक्र ग्रह की सतह पृथ्वी के समान है, लेकिन इसकी भौगोलिक संरचना में कई रहस्य छिपे हुए हैं। इस मिशन के माध्यम से वैज्ञानिक शुक्र ग्रह की सतह और उपसतह की संरचना का विश्लेषण करेंगे, जिससे इसके भू-वैज्ञानिक इतिहास को समझने में मदद मिलेगी।
  3. सौर विकिरण और शुक्र पर इसका प्रभाव
    शुक्र ग्रह की सतह पर सूर्य के विकिरण का व्यापक प्रभाव पड़ता है। वीनस ऑर्बिटर मिशन इस ग्रह पर सौर विकिरण के प्रभावों का अध्ययन करेगा, जिससे सौर गतिविधियों और ग्रहों के वातावरण पर उनके प्रभाव को समझा जा सकेगा।
  4. भविष्य के ग्रहीय मिशनों के लिए मार्ग प्रशस्त करना
    यह मिशन बड़े पेलोड ले जाने में सक्षम भविष्य के ग्रहीय मिशनों के प्रक्षेपण के तरीके को बेहतर बनाने में मदद करेगा। इसके साथ ही, ग्रहों की कक्षाओं में प्रवेश करने और उनकी सतह का गहन विश्लेषण करने के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
  5. अर्थव्यवस्था और रोजगार में वृद्धि
    वीनस ऑर्बिटर मिशन से भारत में तकनीकी विकास को बढ़ावा मिलेगा और इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। इसके अलावा, अंतरिक्ष क्षेत्र में हो रहे नवाचारों के वाणिज्यिक उपयोग को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भी लाभ होगा।

शुक्र ग्रह: पृथ्वी का जुड़वां, फिर भी अनोखा

शुक्र ग्रह पृथ्वी का निकटतम ग्रह है और इसे हमारे सौरमंडल का “जुड़वां ग्रह” माना जाता है। हालाँकि इसका आकार और संरचना पृथ्वी से मिलती-जुलती है, लेकिन इसका वातावरण बेहद विषाक्त है। इसके वायुमंडल में सल्फ्यूरिक एसिड के बादल और तीव्र ग्रीनहाउस प्रभाव इसे हमारे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह बनाते हैं। शुक्र का वायुमंडल इतना सघन है कि यह ऊष्मा को भीतर ही रोक कर रखता है, जिससे इसका तापमान अत्यधिक हो जाता है।

शुक्र ग्रह की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह हमारे सौरमंडल का इकलौता ऐसा ग्रह है, जो पूर्व से पश्चिम दिशा में घूमता है। इसके अलावा, शुक्र ग्रह पर फास्फीन गैस पाई गई है, जो सूक्ष्मजीवों की संभावित उपस्थिति का संकेत देती है।

पिछले और भविष्य के वीनस मिशन:

शुक्र ग्रह का अध्ययन लंबे समय से अंतरिक्ष विज्ञान का महत्वपूर्ण विषय रहा है। इसके पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय मिशन शुक्र ग्रह की जानकारी जुटाने के लिए भेजे जा चुके हैं:

  1. मैरीनर 2 (1962, संयुक्त राज्य अमेरिका) – यह शुक्र पर भेजा गया पहला अंतरिक्ष यान था।
  2. वेनोरा-7 (1970, सोवियत संघ) – शुक्र पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला अंतरिक्ष यान।
  3. मैगेलन (1990, संयुक्त राज्य अमेरिका) – इसने शुक्र की सतह की पहली नियर-ग्लोबल रडार मैपिंग की।
  4. अकात्सुकी (2015, जापान) – शुक्र के वायुमंडल का अध्ययन करने वाला मिशन।

भविष्य के वीनस मिशन:

आने वाले वर्षों में कई अंतरराष्ट्रीय मिशन शुक्र ग्रह के लिए योजनाबद्ध हैं। इनमें नासा का दा-विंची (Venus Flyby and Probe – 2029) और यूरोपियन स्पेस एजेंसी का वेरिटास ऑर्बिटर (2031) शामिल हैं। इसके अलावा एनविज़न (2031) जैसे मिशन भी शुक्र ग्रह पर भेजे जाएंगे।

भारत के लिए वीनस ऑर्बिटर मिशन का महत्त्व:

वीनस ऑर्बिटर मिशन भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम है। यह मिशन भारत को ग्रहों के अध्ययन और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाएगा। इससे न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमता बढ़ेगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसका प्रभाव होगा।

इस मिशन से भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान को एक नया आयाम मिलेगा और यह भविष्य में अन्य ग्रहीय मिशनों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। इसके अलावा, इस मिशन के माध्यम से प्राप्त की गई जानकारी से पृथ्वी के वायुमंडल और जलवायु परिवर्तन को समझने में भी मदद मिलेगी।

निष्कर्ष:

वीनस ऑर्बिटर मिशन भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशन है, जो न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बल्कि प्रौद्योगिकी और रोजगार के अवसरों के मामले में भी देश के लिए लाभदायक होगा। इस मिशन से भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में एक नई दिशा मिलेगी और यह विश्वभर में भारत की उपस्थिति को और मजबूत करेगा।

FAQs:

वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM) क्या है?

वीनस ऑर्बिटर मिशन भारत का शुक्र ग्रह की कक्षा में भेजा जाने वाला एक वैज्ञानिक अंतरिक्ष मिशन है। इसका उद्देश्य शुक्र ग्रह के वायुमंडल, सतह और उसके विकास के बारे में जानकारी प्राप्त करना है।

वीनस ऑर्बिटर मिशन कब लॉन्च होगा?

इस मिशन का प्रक्षेपण मार्च 2028 में निर्धारित किया गया है।

वीनस ऑर्बिटर मिशन का बजट कितना है?

वीनस ऑर्बिटर मिशन का कुल बजट 1,236 करोड़ रुपये है, जिसमें से 824 करोड़ रुपये अंतरिक्ष यान पर खर्च किए जाएंगे।

शुक्र ग्रह को ‘पृथ्वी का जुड़वां ग्रह’ क्यों कहा जाता है?

शुक्र ग्रह का आकार और संरचना पृथ्वी से मिलते-जुलते हैं, इसलिए इसे ‘पृथ्वी का जुड़वां ग्रह’ कहा जाता है।

शुक्र ग्रह के लिए पहले कौन-कौन से अंतरिक्ष मिशन भेजे गए हैं?

शुक्र ग्रह के लिए पहले मैरीनर 2 (1962, USA), वेनोरा-7 (1970, सोवियत संघ), मैगेलन (1990, USA), और अकात्सुकी (2015, जापान) जैसे मिशन भेजे जा चुके हैं।

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