Women’s Representation in the 18th Lok Sabha: Challenges and Opportunities; 18वीं लोक सभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: चुनौतियाँ और अवसर

18वीं लोक सभा के लिए 74 महिलाएं (13.6% प्रतिनिधित्व) संसद सदस्य के रूप में चुनी गई हैं। जबकि 17वीं लोक सभा के लिए 78 महिलाएं (14.4% प्रतिनिधित्व) संसद सदस्य के रूप में चुनी गई थीं। इस प्रकार देखा जाए तो 18वीं लोक सभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में थोड़ी गिरावट आई है। यह गिरावट महिला सशक्तिकरण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण विषय है जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।

विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति:

18वीं लोक सभा के लिए आयोजित चुनाव में 797 महिलाएं प्रतिभागी थीं, जिनमें से 9.7% ने जीत हासिल की। वहीं, 17वीं लोक सभा के लिए आयोजित चुनाव में 726 महिला प्रतिभागियों में से 10.74% ने जीत हासिल की थी।

पहली लोक सभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5% था, जो 17वीं लोक सभा में बढ़कर उच्चतम 14.4% हो गया था। वर्तमान में राज्य सभा में महिला सदस्यों की भागीदारी 14.05% है। वैश्विक स्तर पर, देशों की संसदों में महिलाओं की कुल हिस्सेदारी 26.9% है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत को वैश्विक औसत तक पहुँचने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

महिला प्रतिनिधित्व का महत्त्व:

महिला संसद सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्रों में पुरुष संसद सदस्यों की तुलना में आर्थिक संकेतकों पर बेहतर प्रदर्शन करती हैं। यह अध्ययन और शोध के माध्यम से साबित हुआ है कि महिला प्रतिनिधियों का प्रभाव अधिक सकारात्मक होता है। भारत की कुल आबादी में लगभग 50% हिस्सा महिलाओं का है। ऐसे में, इतनी बड़ी आबादी का विधायी प्रतिनिधित्व महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण के लिए बेहद जरूरी है।

महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम आपराधिक और कम भ्रष्ट होती हैं। वे अधिक प्रभावशाली होती हैं और उनके भीतर राजनीतिक अवसरवाद कम होता है। महिला सांसदों का होना समाज के विभिन्न वर्गों के लिए प्रेरणादायक होता है और यह सामाजिक सुधारों को तेज करने में मदद करता है।

महिलाओं के विधायी प्रतिनिधित्व के समक्ष चुनौतियाँ:

महिलाओं के विधायी प्रतिनिधित्व के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं:

  1. सामाजिक पूर्वाग्रह: पुरुष प्रधान राजनीतिक संरचनाएँ, पारिवारिक दायित्व आदि प्रमुख चुनौतियाँ हैं। समाज में महिलाओं को अभी भी समानता का दर्जा नहीं मिल पाया है और यह पूर्वाग्रह उनके राजनीतिक करियर को प्रभावित करता है।
  2. संरचनात्मक बाधाएँ:
    • चुनावी प्रक्रिया काफी महंगी होती है। महिलाओं के लिए चुनावी प्रचार और चुनावी खर्च को वहन करना कठिन होता है।
    • इसमें काफी अधिक समय लगता है, जिससे महिलाएं अपने परिवार और कैरियर के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई महसूस करती हैं।
    • कई बार अनुचित टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका मनोबल गिर सकता है।
    • चुनाव के दौरान हेट स्पीच का सामना करना पड़ता है, जो मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है।
    • अपमानजनक धमकियाँ सुनने को मिलती हैं, जिससे उनके आत्मविश्वास पर असर पड़ता है।
    • बाहुबल का प्रभाव भी देखा जाता है, जो महिलाओं के लिए एक बड़ी चुनौती होती है।
  3. पितृसत्तात्मक समाज: महिलाएं स्वयं कई बार पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंडों से प्रभावित होती हैं। ये मानदंड उनकी प्रगति को रोकते हैं और उनके आत्मविश्वास को कम करते हैं।

महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम:

  1. नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 (106वां संविधान संशोधन): यह अधिनियम लोक सभा, राज्य विधान सभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) दिल्ली की विधान सभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों पर आरक्षण का प्रावधान करता है। इस अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को राजनीतिक मंच पर और अधिक सशक्त बनाना है।
  2. 73वें और 74वें संविधान संशोधन: इन संशोधनों द्वारा पंचायतों एवं नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए 1/3 सीटें आरक्षित की गई हैं। यह स्थानीय स्तर पर महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम है।
  3. सतत विकास लक्ष्य (SDG) टारगेट 5.5: भारत ने राजनीति और सार्वजनिक जीवन में निर्णय लेने के सभी स्तरों पर महिलाओं की पूर्ण एवं प्रभावी भागीदारी का आह्वान किया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

महिलाओं के प्रतिनिधित्व में गिरावट के बावजूद, उनकी उपस्थिति और योगदान महत्वपूर्ण हैं। महिला सांसदों का बेहतर प्रदर्शन और उनके द्वारा लाई गई सकारात्मक बदलाव, समाज के विभिन्न वर्गों को प्रेरित करते हैं। महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए उठाए गए कदमों को और सशक्त बनाने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और अधिक बढ़ सके।

FAQs:

18वीं लोक सभा में कितनी महिलाएं चुनी गई हैं?

18वीं लोक सभा के लिए 74 महिलाएं (13.6% प्रतिनिधित्व) संसद सदस्य के रूप में चुनी गई हैं।

महिलाओं के विधायी प्रतिनिधित्व में गिरावट का कारण क्या है?

महिलाओं के विधायी प्रतिनिधित्व में गिरावट के कारणों में सामाजिक पूर्वाग्रह, पुरुष प्रधान राजनीतिक संरचनाएँ, पारिवारिक दायित्व, चुनावी प्रक्रिया की महंगी लागत और पितृसत्तात्मक समाज शामिल हैं।

महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए कौन से कदम उठाए गए हैं?

महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023, 73वें और 74वें संविधान संशोधन और सतत विकास लक्ष्य (SDG) टारगेट 5.5 जैसे कदम उठाए गए हैं।

महिलाओं के विधायी प्रतिनिधित्व का महत्त्व क्या है?

महिला संसद सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्रों में आर्थिक संकेतकों पर बेहतर प्रदर्शन करती हैं। वे कम आपराधिक और कम भ्रष्ट होती हैं, और उनके भीतर राजनीतिक अवसरवाद कम होता है।

महिला संसद सदस्यों को चुनावी प्रक्रिया में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

महिलाओं को चुनावी प्रक्रिया में सामाजिक पूर्वाग्रह, महंगी चुनावी प्रक्रिया, समय की कमी, अनुचित टिप्पणियाँ, हेट स्पीच, अपमानजनक धमकियाँ, और बाहुबल जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

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