World Bank’s World Development Report 2024: Middle Income Trap; विश्व बैंक की वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024: मिडिल इनकम ट्रैप

विश्व बैंक ने हाल ही में अपनी ताजा रिपोर्ट “वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024: मिडिल इनकम ट्रैप” जारी की है। यह रिपोर्ट विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जिसमें उन्हें “मिडिल इनकम ट्रैप” से बचाने के लिए एक व्यापक रोडमैप का उल्लेख किया गया है। इस लेख में हम इस रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं, चुनौतियों और संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

मिडिल इनकम ट्रैप क्या है?

मिडिल इनकम ट्रैप एक ऐसी स्थिति है, जिसमें एक मध्यम-आय वाला देश व्यवस्थित संवृद्धि में स्लोडाउन का अनुभव करता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह उच्च-आय स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक नई आर्थिक संरचनाओं को नहीं अपना पाता है। जिन देशों का प्रति व्यक्ति वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 1,136 डॉलर से 13,845 डॉलर के बीच होता है, उन्हें मध्यम-आय वाले देश माना जाता है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:

जैसे-जैसे देश समृद्ध होते जाते हैं, वे आम तौर पर ‘प्रति व्यक्ति वार्षिक अमेरिकी GDP’ के लगभग 10% (आज के 8,000 डॉलर के बराबर) पर आकर एक इनकम ट्रैप में फंस जाते हैं और इसके बाद वे तेजी से आगे नहीं बढ़ पाते हैं।

1990 के बाद से, केवल 34 मध्यम-आय वाले देश (MIC) उच्च-आय वाले देश के रूप में प्रगति करने में सफल रहे हैं।

2023 के अंत में 108 देशों को मध्यम-आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इन देशों में वैश्विक आबादी का 75% हिस्सा रहता है और ये देश वैश्विक GDP में 40% से अधिक का योगदान करते हैं।

मिडिल इनकम ट्रैप की मुख्य चुनौतियाँ:

रिपोर्ट में मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने के लिए निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख किया गया है:

  1. तेजी से बढ़ती वृद्ध जन आबादी: बढ़ती वृद्ध जन आबादी के कारण उत्पादन क्षमता में कमी आती है, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
  2. विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ता संरक्षणवाद: विकसित देशों में बढ़ते संरक्षणवाद के कारण विकासशील देशों के लिए व्यापार के अवसर कम हो जाते हैं।
  3. एनर्जी ट्रांजीशन में धीमापन: एनर्जी ट्रांजीशन में तेजी न लाने के कारण आर्थिक दक्षता और पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ जाता है।

भारत का संदर्भ:

भारत को 2007 में निम्न मध्यम-आय वाला देश माना गया था। तब से यह प्रति व्यक्ति 2,540 डॉलर की वर्तमान सकल राष्ट्रीय आय (GNI) के साथ निम्न मध्यम-आय वाला देश बना हुआ है। मौजूदा रुझानों के अनुसार, भारत को प्रति व्यक्ति अमेरिकी आय के एक-चौथाई तक पहुंचने में अभी 75 साल लगेंगे।

रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें:

1. 3I (इन्वेस्टमेंट, इन्फ्यूजन और इनोवेशन) रणनीति:

  • पहला ध्यान निवेश (इन्वेस्टमेंट) पर केंद्रित करना चाहिए।
  • नई प्रौद्योगिकियों के समावेशन (इन्फ्यूजन) पर ध्यान देना चाहिए।
  • एक त्रि-आयामी रणनीति अपनानी चाहिए, जो 3I को संतुलित करेगी।

2. व्यापार गतिशीलता को प्रोत्साहन:

  • व्यापार गतिशीलता को प्रोत्साहित करने और पूंजी बाजार को गहन बनाने के लिए मूल्य वर्धन करने वाली कंपनियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए।

3. सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा:

  • महिलाओं, अल्पसंख्यकों और वंचित समूहों को समान अवसर प्रदान करके सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देना चाहिए।
  • उदाहरण के लिए, भारत में महिलाओं के समक्ष उद्यमिता संबंधी बाधाओं को दूर करने से वास्तविक आय में 40% की वृद्धि होगी।

4. ऊर्जा की कीमतों में सुधार:

  • ऊर्जा की कीमतों में पर्यावरणीय लागतों को प्रतिबिंबित करके आर्थिक दक्षता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।

विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ता संरक्षणवाद:

परिभाषा: संरक्षणवाद (Protectionism) वह नीति है जिसमें एक देश अपनी अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए विभिन्न व्यापारिक अवरोधों (जैसे, उच्च आयात शुल्क, कोटा, सब्सिडी, और अन्य प्रतिबंध) का उपयोग करता है।
विकसित देशों में बढ़ते संरक्षणवाद: हाल के वर्षों में, विकसित देशों में संरक्षणवाद की प्रवृत्ति बढ़ी है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों और रोजगार को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना है। इस नीति का प्रभाव निम्नलिखित रूप से विकासशील देशों पर पड़ता है:
  1. व्यापार के अवसरों में कमी:
    • जब विकसित देश अपने बाजारों को विदेशी उत्पादों के लिए कम सुलभ बना देते हैं, तो विकासशील देशों के निर्यातकों के लिए व्यापार के अवसर सीमित हो जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए, अगर अमेरिका अपने घरेलू इस्पात उद्योग की रक्षा के लिए आयात शुल्क बढ़ाता है, तो भारत जैसे विकासशील देशों के इस्पात निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाजार तक पहुंचना कठिन हो जाता है।
  2. प्रतिस्पर्धा में कमी:
    • संरक्षणवाद के कारण, विकासशील देशों के उत्पाद विकसित देशों के बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते, जिससे उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होती है।
    • यह इन देशों की आर्थिक वृद्धि और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  3. आर्थिक असंतुलन:
    • संरक्षणवादी नीतियों के परिणामस्वरूप वैश्विक व्यापार असंतुलित हो जाता है, जिससे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था कमजोर हो सकती है।
    • इससे विकासशील देशों के विदेशी मुद्रा भंडार और व्यापार संतुलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  4. नई तकनीकों और ज्ञान का अवरोध:
    • विकसित देशों से आयात प्रतिबंध के कारण विकासशील देशों में नई तकनीकों और नवाचारों का आगमन रुक सकता है।
    • इससे उनकी औद्योगिक और तकनीकी प्रगति धीमी हो जाती है।

निष्कर्ष:

विश्व बैंक की यह रिपोर्ट विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शिका है, जो उन्हें मिडिल इनकम ट्रैप से बचाने के लिए आवश्यक नीतिगत उपायों और रणनीतियों का विस्तृत खाका प्रस्तुत करती है। इस रिपोर्ट के माध्यम से, विकासशील देश अपने आर्थिक विकास को सुनिश्चित कर सकते हैं और उच्च-आय वाले देशों की श्रेणी में प्रवेश कर सकते हैं।

FAQs:

मिडिल इनकम ट्रैप क्या है?

मिडिल इनकम ट्रैप एक स्थिति है जिसमें एक मध्यम-आय वाला देश उच्च-आय स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक नई आर्थिक संरचनाओं को नहीं अपना पाता और उसकी संवृद्धि धीमी हो जाती है।

विश्व बैंक की वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 का मुख्य उद्देश्य क्या है?

इस रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य विकासशील देशों को मिडिल इनकम ट्रैप से बचाने के लिए आवश्यक नीतिगत उपायों और रणनीतियों का सुझाव देना है।

मिडिल इनकम ट्रैप से बचने के लिए प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

तेजी से बढ़ती वृद्ध जन आबादी, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ता संरक्षणवाद, और ऊर्जा संक्रमण में धीमापन प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

3I रणनीति क्या है?

3I रणनीति में निवेश (इन्वेस्टमेंट), नई प्रौद्योगिकियों का समावेशन (इन्फ्यूजन) और नवाचार (इननोवेशन) शामिल हैं। यह रणनीति देशों को मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने में मदद कर सकती है।

रिपोर्ट में महिलाओं के संदर्भ में क्या सिफारिश की गई है?

रिपोर्ट में महिलाओं को समान अवसर प्रदान करके उनकी उद्यमिता संबंधी बाधाओं को दूर करने की सिफारिश की गई है, जिससे वास्तविक आय में 40% की वृद्धि हो सकती है।

ऊर्जा की कीमतों के संदर्भ में रिपोर्ट की सिफारिश क्या है?

रिपोर्ट में ऊर्जा की कीमतों में पर्यावरणीय लागतों को प्रतिबिंबित करके आर्थिक दक्षता बढ़ाने पर ध्यान देने की सिफारिश की गई है।

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