हिमालय में स्थित याला ग्लेशियर, जो नेपाल के प्रमुख ग्लेशियरों में से एक है, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण तेजी से पिघल रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह ग्लेशियर 2040 तक पूरी तरह समाप्त हो सकता है। यह घटनाक्रम जलवायु संकट के गंभीर प्रभावों को उजागर करता है और हमारी पर्यावरणीय नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
याला ग्लेशियर:
याला ग्लेशियर, नेपाल के लांगटांग नेशनल पार्क में स्थित है और हिमालय के सबसे महत्वपूर्ण ग्लेशियरों में से एक है।
- 680 मीटर पीछे हट चुका है: 1974 और 2021 के बीच इस ग्लेशियर ने 680 मीटर तक पीछे हटने का रिकॉर्ड दर्ज किया है।
- 36% क्षेत्रफल की कमी: इस दौरान ग्लेशियर के कुल क्षेत्रफल में 36% की कमी आई है।
- यह ग्लोबल ग्लेशियर कैजुअल्टी लिस्ट (GGCL) में शामिल एकमात्र हिमालयी ग्लेशियर है, GGCL जलवायु परिवर्तन के ग्लेशियरों पर पड़ने वाले प्रभाव को उजाागर करता है।
ग्लोबल ग्लेशियर कैजुअल्टी लिस्ट (GGCL):
यह सूची 2024 में राइस यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ आइसलैंड, आइसलैंड ग्लेशियोलॉजिकल सोसाइटी, वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विस, और यूनेस्को द्वारा लॉन्च की गई थी। GGCL ग्लेशियरों और क्रायोस्फीयर (पृथ्वी के जमे हुए हिस्सों) पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को मापती और विश्लेषित करती है।
समाप्त हो चुके ग्लेशियर:
वेनेजुएला का पिको हम्बोल्ट ग्लेशियर (2024) और फ्रांस का सरेन ग्लेशियर (2023) जैसे कई ग्लेशियर अब पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं। अनुमान है कि चीन का दागू ग्लेशियर 2030 तक पूरी तरह समाप्त हो सकता है।
ग्लेशियरों के पीछे हटने के प्रमुख कारण:
ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और उनका क्षेत्रफल कम होना कई प्राकृतिक और मानव-निर्मित कारकों का परिणाम है।
1. जलवायु परिवर्तन:
- वैश्विक तापमान में वृद्धि:
ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी का औसत तापमान तेजी से बढ़ रहा है। - लंबे और शुष्क मौसम:
ये मौसम ग्लेशियरों को कमजोर बनाते हैं और उनके पिघलने की गति को तेज करते हैं।
2. मानवजनित गतिविधियां:
- प्रदूषण और भूमि उपयोग में बदलाव:
मानवीय गतिविधियों से ग्लेशियरों की सतह पर गंदगी जमा होती है, जो उनकी पिघलने की प्रक्रिया को तेज करती है। - कार्बन फुटप्रिंट:
बढ़ती औद्योगिक गतिविधियां और जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग ग्लेशियरों के लिए खतरा पैदा कर रहा है।
पिघलते ग्लेशियरों के दुष्प्रभाव:
जल संकट और आजीविका पर प्रभाव:
- ग्लेशियर ताजे जल का प्रमुख स्रोत हैं। इनके पिघलने से पानी की उपलब्धता में कमी आएगी।
- हिंदू कुश हिमालय में रहने वाले 240 मिलियन लोगों की आजीविका इससे प्रभावित हो सकती है।
ग्लेशियर झीलों का खतरा:
- तेजी से पिघलने के कारण हिमनदीय झीलें अस्थिर हो जाती हैं।
- झीलों के तटबंध टूटने से विनाशकारी बाढ़ (GLOF) की संभावना बढ़ जाती है।
पर्यावरणीय असंतुलन:
- ग्लेशियरों के पिघलने से जैव विविधता का नुकसान होता है।
- पृथ्वी के एल्बीडो (सूर्य की किरणों को प्रतिबिंबित करने की क्षमता) में कमी आने से ग्लोबल वार्मिंग की गति तेज होती है।
क्रायोस्फीयर के संरक्षण के लिए उठाए गए कदम:
वैश्विक पहलें:
- संयुक्त राष्ट्र की पहल:
- 2025 को “ग्लेशियर संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय वर्ष” घोषित किया गया।
- हर साल 21 मार्च को विश्व ग्लेशियर दिवस मनाया जाता है।
- IUCN और WWF द्वारा पहल:
- हिमालयी संरक्षण नेटवर्क और लिविंग हिमालयाज इनिशिएटिव।
भारत की पहलें:
- राष्ट्रीय हिमालय मिशन:
- हिमालयी पारिस्थितिकी को संरक्षित रखने के लिए।
- INCOIS (भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र):
- ग्लेशियर संबंधी घटनाओं की निगरानी और GLOF अलर्ट जारी करना।
- IndARC:
- आर्कटिक और अंटार्कटिका में अनुसंधान के लिए।
क्रायोस्फीयर (Cryosphere):
क्रायोस्फीयर पृथ्वी का वह हिस्सा है, जहां पानी विभिन्न ठोस रूपों में मौजूद रहता है, जैसे बर्फ, हिम, और जमी हुई भूमि। यह शब्द ग्रीक शब्द "क्रायोस" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "ठंडा" या "बर्फीला।"
क्रायोस्फीयर के प्रमुख घटक:
- ग्लेशियर: यह विशाल हिमखंड होते हैं, जो पर्वतीय क्षेत्रों या ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- बर्फ की चादरें (Ice Sheets): ये विशाल हिम संरचनाएं हैं, जैसे अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरें।
- बर्फ की चट्टानें (Ice Shelves): ये तैरती हुई बर्फ की चादरें होती हैं, जो समुद्री जल पर तैरती हैं।
- जमी हुई भूमि (Permafrost): यह वह भूमि है, जो लगातार 2 साल या उससे अधिक समय तक जमी रहती है।
- बर्फीले समुद्र (Sea Ice): समुद्र का जमी हुई सतह वाला हिस्सा।
- हिमपात और बर्फ के मैदान (Snow Cover): भूमि पर जमी हुई बर्फ की परत।
क्रायोस्फीयर का महत्व:
- पानी का भंडारण: क्रायोस्फीयर में पृथ्वी के कुल ताजे पानी का लगभग 70% हिस्सा संग्रहित है।
- जलवायु नियमन: बर्फ और बर्फ की चादरें सूर्य की किरणों को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करती हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान नियंत्रित रहता है।
- समुद्र स्तर पर प्रभाव: जब ग्लेशियर और बर्फ की चादरें पिघलती हैं, तो समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।
- पर्यावरणीय संतुलन: यह स्थानीय और वैश्विक पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- मानव जीवन पर प्रभाव: दुनिया के कई क्षेत्रों में लोग क्रायोस्फीयर से प्राप्त पानी का उपयोग पीने, खेती और बिजली उत्पादन के लिए करते हैं।
निष्कर्ष:
याला ग्लेशियर का पिघलना केवल हिमालय ही नहीं, बल्कि वैश्विक पर्यावरण के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का प्रतीक है और इसके संरक्षण के लिए त्वरित और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता और ठोस कदम ही भविष्य में इस अनमोल धरोहर को बचा सकते हैं।
FAQs:
याला ग्लेशियर कहां स्थित है?
याला ग्लेशियर, नेपाल के लांगटांग नेशनल पार्क में स्थित है और हिमालय के सबसे महत्वपूर्ण ग्लेशियरों में से एक है।
याला ग्लेशियर के पिघलने के मुख्य कारण क्या हैं?
याला ग्लेशियर के पिघलने के मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग, मानवीय गतिविधियां और शुष्क सर्दियां हैं।
याला ग्लेशियर का अब तक कितना क्षेत्रफल कम हो चुका है?
1974 और 2021 के बीच याला ग्लेशियर 680 मीटर पीछे हट चुका है, जिससे इसका क्षेत्रफल लगभग 36% कम हो गया है।
क्रायोस्फीयर का क्या महत्व है?
क्रायोस्फीयर पृथ्वी का वह जमा हुआ हिस्सा है, जिसमें बर्फ, हिम (ग्लेशियर) और जमी हुई भूमि (फ्रोजन ग्राउंड) शामिल हैं। यह ताजा जल का एक प्रमुख स्रोत है और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।
ग्लेशियरों के पिघलने से कौन-कौन से खतरे उत्पन्न होते हैं?
ग्लेशियरों के पिघलने से जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियल झील के तटबंध टूटने से बाढ़ (GLOF), जैव विविधता का नुकसान, पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान और मानव आजीविका पर संकट उत्पन्न होता है।
GLOF क्या है?
GLOF का अर्थ है “ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड,” जो ग्लेशियल झीलों के तटबंध टूटने के कारण अचानक और विनाशकारी बाढ़ है।